The-oath-of-the-vayuputras-by-Amish-Tripathi-in-hindi.Pdf शिव अपनी शक्तियों को समेटते हैं और नागाओं की राजधानी पंचवटी पहुँचते हैं। अंततः, बुराई का रहस्य उजागर होता है। नीलकंठ अपने सच्चे दुश्मन के खिलाफ धर्म युद्ध की तैयारी कर रहा है। यह एक ऐसा दुश्मन है, जिसका नाम सुनकर बड़े-बड़े योद्धा भी थर्रा जाते हैं। एक के बाद एक होने वाले भयानक युद्ध से भारतवर्ष की आत्मा काँप उठती है। ये सारे युद्ध भारत पर काबिज होने के षड्यंत्र का हिस्सा हैं, जिनमें कई जीवनों की कीमत चुकानी पड़ेगी। लेकिन शिव हार नहीं मान सकते, चाहे उन्हें कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न झेलनी पड़े। अपने साहस के बल पर, वह वायुपुत्रों के पास पहुँचते हैं, जो उन्हें अपनाने के लिए पहले तैयार नहीं थे।
वायुपत्रों की शपथ-
देवगिरि का निष्कर्ष वासुदेव की इच्छा के अनुसार नहीं था। लेकिन बुराई को समाप्त कर देने की भावना ने उसे शांति दी। सोमरस के ज्ञान की रक्षा होने से भारत में नई ऊर्जा का संचार हो चुका था। नीलकंठ अपने उद्देश्य में सफल रहे, और इसके पीछे वासुदेवों का योगदान भी था। गोपाल ने वीरभद्र और महादेव की नई जनजाति, अर्थात ल्हासा के लोगों के साथ औपचारिक संबंध भी स्थापित कर लिए थे। वासुदेव और ल्हासाई मिलकर भारत पर नजर रखेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि यह देवभूमि हमेशा समृद्धि और संतुलन के साथ विकसित होती रहे।
जब शिव अपने मित्रा गोपाल को देखते हैं, तो उन्हें वायुपुतरों का भी ख्याल आता है। वे कभी भी शिव को पशुपतिअस्त्रा का प्रयोग करने के लिए माफ नहीं कर पाए। मित्रा के लिए यह विशेष रूप से शर्म की बात थी, क्योंकि उन्होंने विरोध के बावजूद शिव के नीलकंठ होने की घोषणा का समर्थन किया था। एक दिव्य अस्त्र के अव्यवस्थित प्रयोग का दंड चौदह वर्ष का निर्वासन था। अपने वादे को तोड़ने और अपनी सास वीरिनी, दोस्तों पर्वतेश्वर और आनंदमयी की मृत्यु का कारण बनने के बाद, शिव ने खुद को भारत से निष्कासन की सजा दी थी! न केवल चौदह वर्षों के लिए, बल्कि अपने शेष जीवन के लिए।
बुराई क्या है?
बृहस्पति ने कहा कि जो सोमरस हमें लम्बी आयु देते है ।वही सोमरस के उपयोग से अनेक प्रकार के हानियों के कारण ही ब्रंगा वाले और नागाओं को अपना जीवन कष्ट में व्यतीत कर रहे है । फिर बृहस्पति सोमरस के इतिहास के बारे में बताता है । कैसे सोमरस ब्राह्मणो से सामान्य लोगों तक पहूंचा । कैसे नागाओं ने सोमरस की खोज की । काली ने कहा कि नागाओं को वायुपुत्र सभा ने में बताया था । शिव ने ब्रस्पति से पूछा कि आपने यह सब बातें दक्ष को बताया । बृहस्पति ने बोला था पर महाराज दक्ष वैज्ञानिक बातें समझते नहीं थे ।
दूसरी तरफ कार्तिक शिकार में गए थे । जहाँ उनोह्णे बहुत बहादुरी से गैंडा का शिकार किया ।
मेलुहा में कनखला ने एक पत्र दक्ष को दिया । जिसे पढ़के दक्ष रोने लगा । वारिनि ने जब पत्र देखा तो उसने वो पत्र जला दिया ।
छोटा मार्ग-
शिव , सती, कार्तिक ,गणेश , नंदी , बृहस्पति उज्जैन के लिए पहुंच गए जिसे वसुदेवों की नगरी कहते है। दूसरी तरफ महर्षि भृगु को एक पत्र मिला जिसमें वायुपुत्रों ने दैवी अस्त्रों का प्रयोग करने के कारण उन्हें (ऋषि भृगु ) निकाल दिया। एक कबूतर पंचवटी से ऋषि भृगु के पास सन्देश लेके आया है कि जो आकर्मण करने वाले लोगों का कोई पता नहीं चल पा रहा था और यह भी निश्चित नहीं है कि शिव और सती जीवित है या नहीं। सुरक्षा के लिए मेलुहा और अयोध्या के सैनिको को तैयार रहने के लिए कहने का सोचा है।
शिव कौन है ?
शिव को गोपाल और अन्य वसुदेवों से पता चलता है कि उनका गला नीला होना कोई संयोग नहीं था। सब उनके काका मनोभू द्वारा बनाया गया योजना थी । शिव को यह भी पता चलता है कि उसके काका मनोभू एक वायुपुत्र थे। मनोभो का मानना था कि सोमरस बहुत बड़ी बुराई बनने वाली है पर अन्य वायुपुत्रों को विश्वास नहीं था।
दूसरी तरफ गणेश , पशुराम , सती यह बहस कर रहे थे कि यदि युद्ध हुआ तो पर्वतेश्वर किसका साथ देंगे।
उनका नाम ही भय उत्पन करता है-
सोमरस को रोकने के लिए शिव युद्ध और उनके साथी योजना बना रहे थे। शिव को अपने पुत्रों की योजना पसंद आयी। उनके पुत्रों की योजना थी कि मगध से मित्रता की जाये या उनसे मगध जीत लिया जाये।
दूसरी तरफ , पर्वतेश्वर और आनंदमयी भावुक हो रहे थे क्यूंकि पर्वतेश्वर मेलुहा का साथ देने वाले थे और आनंदमयी शिव का। इसलिए उनको अलग होना था।
राई का विनाश-
आख़िरकार , शिव ने पशुपति अस्त्र से बुराई का विनाश कर ही दिया। जब वह बुराई का विनाश करते हुए बहार निकल ही रहा था तो काल्पनिक सती ने मारी। उसको पीछे से आवाज मारी। इसलिए शिव देवगिरि में शिव पीछे पीछे चला गया।
पवित्र झील के निकट-
तीस साल बाद , शिव और उनके साथी कैलाश में रहने लगे। देवगिरि में बचाई गयी ब्राह्मण वैज्ञानिकों को शिव के बाद छोड़े गए जनजाति की स्तापना की गया जो चंदवंशी ,सूर्यवंशी और नागाओं का मिश्रन होगा। काली, भगीरथ , पशुराम ,गणेश और कार्तिक ने विद्युमालि के द्वारा बताये गए हत्यारों को मार दिया गय। विद्य्मालि को एक भयानक मौत दी गयी।